केंद्रीय संचार एवं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा का कहना है कि अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है कि मोबाइल टावरों के विकिरण से मानव स्वास्थ्य को खतरा है। मगर भ्रांतियों और प्रभुत्वशाली लोगों के विरोध के कारण हम बुनियादी ढांचा नहीं खड़ा कर पा रहे। कॉल ड्रॉप की समस्या निरंतर निगरानी और नई तकनीक से जुड़ कर ही खत्म होगी। उन्होंने कहा कि हम किसी भी हालत में रेलवे का निजीकरण नहीं करेंगे, हां निजी निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं। लोगों की आम जिंदगी से जुड़े संचार और रेल विभाग के हाल पर बातचीत के इस कार्यक्रम का संचालन किया कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज ने।

दीपक रस्तोगी : तमाम प्रयासों के बावजूद कॉल ड्रॉप की समस्या पर काबू नहीं पाया जा सका है, इसके लिए आप क्या करने जा रहे हैं?

मनोज सिन्हा : इसमें आपको एक मौलिक बात बताता हूं। वायर लाइन नेटवर्क हमेशा भरोसेमंद नेटवर्क होता है, वायरलेस नेटवर्क कभी भरोसेमंद नहीं माना जाता। हमारे देश की कठिनाई यह है कि हम देश भर में वायर लाइन नेटवर्क नहीं बना सके, तब तक मोबाइल आया और हम स्विच ओवर कर गए। इस तरह वायरलेस पर ही हमने अपना कम्युनिकेशन सिस्टम डाल दिया। उसे प्रभावशाली बनाने के लिए आधारभूत ढांचा चाहिए। उसके लिए टावर चाहिए। पर स्थिति यह है कि टावर लगाना आसान काम नहीं रह गया है। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के वे इलाके, जहां प्रभावशाली लोग रहते हैं, वे काफी प्रतिरोध पैदा करते हैं। फिर भी 2014 तक देश में 7.6 लाख डीटीएच थे, अब उनकी संख्या अठारह लाख से ज्यादा हो गई है। हमने पिछले चार वर्षों में आधारभूत ढांचे को बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ाया है। कॉल ड्रॉप निरंतर निगरानी से ही ठीक होगी, उसका कोई स्थायी समाधान तकनीक ने नहीं दिया है।

इसका उपाय यही है कि एक अच्छा आधारभूत ढांचा हम बनाएं, नई तकनीक का प्रयोग करें, और उस दिशा में देश काफी आगे बढ़ा है। हां, यह सच है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आधारभूत ढांचा खड़ा करने में हमें काफी दिक्कत आ रही है। पर, उसका भी समाधान हमने निकाला है। सरकारी भवनों पर टावर लगाने की व्यवस्था की है। एक तो लोगों में यह भ्रांति फैलाई गई है कि टावर से होने वाले रेडिएशन का स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है, जोकि तथ्यहीन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब तक मोटे तौर पर पच्चीस हजार से ज्यादा अध्ययन किए हैं, उनमें किसी एक रिपोर्ट में यह बात नहीं कही गई है कि उसके रेडिएशन से इंसान के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वैसे भी दुनिया में जो नियम हैं, उनसे दस गुना ज्यादा कड़े नियम भारत में हैं। इसलिए अगर बढ़िया सेवा चाहिए, तो आधारभूत ढांचा खड़ा करने में लोगों को हमारा साथ देना चाहिए। लोगों को कॉल ड्रॉप की समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिए हमारे मंत्रालय ने कई सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं, जिसके जरिए नेटवर्क पर निगरानी रखी जाती है और समस्या का समाधान निकाला जाता है। पिछली तीन तिमाहियों के आंकड़े देखें, तो कॉल ड्रॉप की दर में काफी कमी आई है।

मुकेश भारद्वाज : कुछ साल पहले देश का सबसे बड़ा घोटाला इसी महकमे में हुआ था। तो, इस महकमे को भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त बनाने की कोई रणनीति भी सरकार ने तैयार की है?

मुझे प्रसन्नता है इस बात की कि जिन मसलों पर पिछली सरकार विफल रही, पिछले चार-साढ़े चार सालों में हमारी सरकार ने उसे सुलझाने में सफलता पाई है। जिन कारणों की वजह से यह मंत्रालय जाना जाता था, पिछले सालों में उसकी चर्चा आपने नहीं सुनी होगी। स्पेक्ट्रम नीलामी को लेकर सीबीसी ने जो उत्कृष्टता पुरस्कार दिया, वह हमारे मंत्रालय को ही दिया है। पारदर्शिता पर इस सरकार का पूरा बल है। खासकर स्पेक्ट्रम नीलामी में हमने पूरी तरह पारदर्शिता बरती है। अगर सरकार तय कर ले, तो भ्रष्टाचार पर पूरी तरह अंकुश लगाया जा सकता है।

मनोज मिश्र : अभी जो इंडिया पोस्ट भुगतान बैंक की शुरुआत हुई है, उसमें मुख्य भूमिका डाकिए की होगी। क्या इस योजना के लिए उन्हें आधुनिक जरूरतों के हिसाब से लैस कर दिया गया है?

मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं इस बात को लेकर और पिछले तीन वर्षों से आइसीटी का प्रयोग डाक विभाग में पूरी तरह से हो, इसे लेकर कई योजनाएं हमने शुरू की हैं। जैसे दो हजार पचास बैंकों में कोर बैंकिंग सल्यूशन और कोर इंश्योरेंस भी हमने लागू कर दिया था और उस दिशा में तैयारी भी चल रही थी। जब इंडिया पोस्ट बैंक बनाने की बात की तो जिस कठिनाई का आप जिक्र कर रहे हैं, उससे हम वाकिफ थे। अठारह हजार डाककर्मियों को हम पहले ही प्रशिक्षण दे चुके हैं। अनेक मास्टर ट्रेनर हमने बनाए हैं। तो, प्रशिक्षण का काम अनवरत चल रहा है, ताकि जिस तकनीक का प्रयोग करना है, उसे वे पूरी तरह से भलीभांति कर सकें।

अरविंद शेष : पिछले साल सीवीसी की एक रिपोर्ट आई थी, जिसके अनुसार छिहत्तर फीसद भ्रष्टाचार के मामले बढ़े हैं। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे।

क्षमा कीजिएगा, मैंने वह रिपोर्ट नहीं देखी है। पर प्रत्यक्ष रूप से आप कोई एक घटना बताइए, जिसमें भ्रष्टाचार का मामला हो।

मृणाल वल्लरी : टेलीकॉम उद्योग उछाल पर है, उत्तर प्रदेश में इनवेस्टमेंट समिट होता है। इसी समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कहते हैं कि अभी हमारे यहां ऐसे लोग नहीं हैं, जो पूरी क्षमता से काम कर सकें, इसे आप किस तरह देखते हैं?

मोटे तौर पर मैं समझता हूं कि हमारी नई पीढ़ी में संभावनाएं असीम हैं। मैं नहीं मानता कि दुनिया के किसी भी देश से हमारे यहां कम प्रतिभावान लोग हैं। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि दुनिया के विकसित देशों में जिस तरह की विकसित तकनीक है, उसका उपयोग करने में हमारे नौजवान पूरी तरह समर्थ हैं।

अजय पांडेय : निजी कंपनियों के मुकाबले एमटीएनएल और बीएसएनल की फोन सेवाएं बेहद खराब हैं, ऐसा क्यों?

यह सही बात है। पर बीएसएनएल और एमटीएनएल की परिस्थितियां अलग-अलग हैं। जहां तक बीएसएनएल की बात है, तो वह वहां है, जहां कोई नहीं है। बाकी लोग वहां हैं, जहां पैसा है। दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में जहां राजस्व है ही नहीं, वहां बीएसएनएल है। और, यह सही है कि 2006-07 में एक समय था कि बीएसएनएल काफी घाटे में चला गया था। तो न वह तकनीक में निवेश कर पा रहा था और न आधारभूत ढांचे में। अब पिछले तीन सालों से वह फायदे में है। मेरा मानना है कि अगर जियो न आया होता तो बीएसएनएल आर्थिक संकट से अब तक निकल गया होता। लेकिन वह अब काफी निवेश कर रहा है, तकनीक में।

मैं मानता हूं कि अब वह अच्छी सेवा देने में काफी हद तक सफल है। एक दिक्कत यह है कि उसके पास 4-जी का स्पेक्ट्रम नहीं है। और बिना 4-जी के इस प्रतिद्वंद्विता में बने रहना कठिन है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद हम बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम नहीं दे सकते। और अभी बीएसएनएल की वह हैसियत नहीं है। लेकिन मेरी कोशिश है कि बीएसएनएल को भी जल्द से जल्द 4-जी स्पेक्ट्रम मिले। मैं मानता हूं कि 4-जी मिलने के बाद बीएसएनएल किसी भी सेवा प्रदाता से मुकाबले के लिए तैयार रहेगा। हालांकि, इन सब दिक्कतों के बावजूद खुशी की बात यह है कि बीएसएनएल ने दूसरी कंपनियों की तुलना में अपना मार्केट शेयर बढ़ाया है।

सूर्यनाथ सिंह : पिछले चार सालों में रेलवे की सेवाओं को लेकर काफी आलोचना हुई है। क्या वजह है कि रेल सेवाओं में सुधार नहीं हो पा रहा है?

मैं आपके बयान से सहमत नहीं हूं। यह सही है कि आलोचनाएं हो रही हैं, और सेवा क्षेत्र में जो भी संस्था काम करती है, समय-समय पर उसकी आलोचना होती रहती है। रेलवे की असली कठिनाई को आप समझेंगे तो सही तस्वीर समझ में आएगी। पिछले कुछ सालों में जिस अनुपात में यात्रियों और माल ढुलाई में वृद्धि हुई है, उस हिसाब से यह देश रेलवे के आधारभूत ढांचे का विकास नहीं कर पाया। आजादी के बाद से अब तक यात्रियों की संख्या बाइस गुना बढ़ गई। माल ढुलाई बारह गुना बढ़ गई। इस तरह मोटे तौर पर हमारा ट्रैफिक सत्रह गुना बढ़ गया। और जो नेटवर्क अंग्रेज छोड़ कर गए थे उसका हमने बत्तीस-तैंतीस फीसद बढ़ाया। इसका कारण है कि रेलवे अंडर इनवेस्टमेंट का शिकार रहा है।

जितनी पूंजी निवेश होनी चाहिए थी, नहीं हुई। 2014 के पहले आप देखेंगे तो अड़तालीस-उनचास हजार करोड़ रुपए रेलवे के आधारभूत ढांचे पर खर्च किए जाते थे। हमारी सरकार ने इस बात को समझा और पिछले साल हमने एक लाख तीस हजार करोड़ रुपए रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च किया और इस साल एक लाख अड़तालीस हजार करोड़ रुपए खर्च करेंगे। अब असली समस्या हमारी ट्रंक लाइनों पर है, जिन्हें हम लंबी दूरी की लाइनें कहते हैं। उन पर अगर कहीं सौ रेलगाड़ियां चलनी चाहिए तो कहीं उन पर एक सौ सैंतीस चल रही हैं, कहीं डेढ़ सौ चल रही हैं। उसमें भी लोगों को और रेलगाड़ियों की जरूरत है। इन सबके बावजूद इस सेवा में व्यापक सुधार हुआ है। पांच सालों में लगभग सभी रेल लाइनों का विद्युतीकरण हो जाएगा। एक बात पर और ध्यान देने की जरूरत है कि आरोप लगते हैं कि रेलवे के कामों में तेजी नहीं आ पाती। पर इस दिशा में भी प्रगति हुई है।

अरविंद शेष : जब हमारे देश में बड़ी आबादी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की है, उसमें फ्लेक्सी फेयर लागू करने का क्या औचित्य था? क्या यह रेलवे के निजीकरण की तरफ उठाया गया एक कदम है?

मैं पूरी तरह आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि सरकार रेलवे का निजीकरण नहीं करने जा रही। हां, निजी निवेश को जरूर हम बढ़ावा देना चाहते हैं। जहां तक फ्लेक्सी फेयर की बात है, हम नौ-दस हजार गाड़ियां चलाते हैं और उनमें से नब्बे से कम गाड़ियों में फ्लेक्सी फेयर लगाया है। केवल राजधानी, शताब्दी, दुरंतो में। मगर उसकी पूरे देश में इस तरह से तस्वीर बना कर पेश की जा रही है जैसे हमने बड़ा भारी गुनाह कर दिया। पर हमने समिति बना कर लोगों की समस्या को दूर करने का प्रयास किया। मोटे तौर पर आप देखेंगे, तो प्रति किलोमीटर प्रति यात्री पर जितना खर्च आता है, उससे भी कम भारतीय रेल वसूलती है, ताकि देश का गरीब आदमी अपने गंतव्य तक जा सके।

दीपक रस्तोगी : पर जब रेलें देर से चलेंगी, तो सवाल तो उठेंगे ही।

मैं उस तथ्य से पूरी तरह वाकिफ हूं, पर ट्रैक नवीकरण का काम लंबे समय से लंबित था, जिसमें दो-तीन बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटनाएं भी हो गर्इं। रेल लाइनों के नवीकरण का काम लगभग पूरा हो गया है और नियमितता पर काफी बल दिया जा रहा है। पहले से काफी सुधर गया है। मुझे लगता है कि अब गाड़ियां लगभग समय से ही चल रही हैं।

अजय पांडेय : रेल दुर्घटनाओं पर काबू क्यों नहीं पाया जा पा रहा?

कई बार मानवीय भूल से भी दुर्घटनाएं हो जाती हैं। मगर इस समस्या को भी समझिए कि एक ही पटरी पर मालगाड़ी भी चलती है, एक्सप्रेस गाड़ी भी चलती है, पैसेंजर गाड़ी भी चलती है, शताब्दी, राजधानी, दुरंतो भी चलती है। फ्रेट कॉरिडोर का काम पूरा हो जाने के बाद इस समस्या से पार पाया जा सकेगा। मालगाड़ियां अलग होंगी, तो नियमितता में भी हमें लाभ होगा और दुर्घटना भी कम होगी। हम तकनीक का अधिक से अधिक उपयोग कर रहे हैं, उसका लाभ जल्दी ही नजर आने लगेगा।

मुकेश भारद्वाज : पिछले कुछ समय से जिस तरह विपक्ष इकट्ठा हो रहा है, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि उससे भाजपा को चुनौती पेश आएगी। इसे आप कैसे देखते हैं?

आज जब मैं विचार करता हूं, तो देश में नरेंद्र मोदी के अलावा एक भी नेता नहीं दिखाई देता है जनता के बीच। स्थानीय स्तर पर कोई हो सकता है, पर दफ्तरों में बैठ कर जो लोग ए प्लस बी प्लस सी करके भाजपा का विकल्प तैयार करना चाहते हैं, मैं समझता हूं, वे गलतफहमी में हैं। एक आदमी ऐसा बताइए, जो उज्ज्वला में जिसे गैस मिलती है उससे भी संपर्क रखता है, जिन विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिलती है उनसे भी संपर्क रखता है, जिनके शौचालय और आवास बने हैं उनसे भी बात करता है, जिस गांव में बिजली पहुंच गई उनसे भी बात करता है, हेकेथॉन में प्रतिभाशाली युवाओं से अलग बात करता है, स्टार्ट-अप के लोगों को अलग जुटाता है, न्यू इंडिया बनाने के लिए लोगों से अलग विचार करता है।

दूसरी तरफ ऐसे नेता हैं, जो पार्टी कार्यालय में बैठ कर इस-उस को मिला कर योजना बनाते हैं कि इन्हें नहीं रहने देंगे। कारण क्या है? क्या देश में उन आठ करोड़ लोगों को रसोई गैस देना, जो कभी सोचते भी नहीं थे कि मिलेगी, यह अपराध है? क्या चार करोड़ लोगों के घरों में बिजली पहुंचाना अपराध है? क्या बत्तीस करोड़ लोगों का बैंक खाता खोलना या तेईस करोड़ लोगों को दो लाख रुपए का जीवन सुरक्षा देना अपराध है। मैं समझता हूं, पच्चीस-छब्बीस करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष लाभ मिला है। हां, वह खेल जरूर बंद हो गया है, जो 2014 से पहले हुआ करता था, तो वे लोग परेशान हैं और वे चाहते हैं कि मोदी को नहीं रहना चाहिए।

मृणाल वल्लरी : मगर जो सवर्ण तबके के लोग भाजपा के पक्ष में माने जाते थे, उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया है, घरों के बाहर बोर्ड लगा दिया है कि कृपया हमसे वोट न मांगें!

सामाजिक न्याय हमारे लिए राजनीतिक नहीं, सामाजिक प्रतिबद्धता का मुद्दा है। भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय से पंडित दीन दयाल ने जो दर्शन दिया, बात वहीं से शुरू होती है कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के जीवन में हम कितना बदलाव कर सकते हैं। वह हमारी प्रतिबद्धता है और हम उसी के लिए काम कर रहे हैं। मुझे लगता है कि रानीतिक कारणों से कुछ लोग इसे हवा देने की कोशिश कर रहे हैं। पहले हमें ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कहा जाता था और हम पर आरोप लगता था, पर अब दलित और पिछड़े भी हमारे साथ हो गए हैं।

सूर्यनाथ सिंह : नोटबंदी को लेकर एक बार फिर से आलोचना शुरू हो गई है कि वह गलत फैसला था। इस पर आपकी क्या राय है?

नोटबंदी का मुख्य उद्देश्य क्या था? यही न कि हमारे देश का जो पैसा है, वह सामान्य अर्थव्यस्था में आ जाए। तो, रिजर्व बैंक के जो आंकड़े आए हैं, उसमें लगभग सारे नोट हमारे पास आ गए हैं। इस तरह मोटे तौर पर नोटबंदी का जो मकसद था, वह पूरा हो गया है। नोटबंदी सफल रही है।

आर्येंद्र उपाध्याय : मगर मुद्दा तो काले धन का था कि नोटबंदी से काला धन वापस आ जाएगा? काले धन का मुद्दा तो अब लगता है, समाप्त ही हो गया।

नहीं, काले धन को लेकर सरकार प्रतिबद्ध है। इसमें कोई बचने वाला नहीं है। हम पूरी तरह प्रयास कर रहे हैं, वह काला धन वापस आएगा।

मनोज सिन्हा

रेल और संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा का जन्म 1 जुलाई, 1959 को मोहनपुरा, गाजीपुर में हुआ। आइआइटी बीएचयू से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई। इस समय उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से सांसद सिन्हा हिंदी पट्टी में अपनी खास शैली के लिए जाने जाते हैं। रेलवे और संचार जैसे विभागों के तकनीकी पक्ष पर पुख्ता और आंकड़ों सहित अपनी बात रखते हैं। अपने प्रशंसकों के बीच प्रभावशाली हिंदी बोलने के लिए जाने जाते हैं।